सफलता का असली राज : हप्पू सिंह की हीरो बनने की कहानी।
Mar 25, 2025By rksharma
उत्तर प्रदेश का एक जिला है हमीरपुर। उसमें एक छोटा सा कस्बा है राठ। 2004 में राठ का रहने वाला एक 23 साल का नौजवान लड़का एक्टर बनने का सपना लेकर मुंबई आया।लेकिन मुंबई में रहने का ठिकाना नहीं था, तो 4 रात स्टेशन पर ही गुजारी। और काम की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा। भाग्य ने साथ दिया।एक दिन क्लोरोमिंट की ऐड फिल्म मिल गई। वो ऐड रिलीज होते ही फेमस हो गया।उसी ऐड फिल्म की बदौलत टेलीविजन शो किये जिनमें FIR, उसके बाद भाभी जी घर पर हैं सीरियल में काम करने का मौका मिला।
उस एक्टर ने ऐसा काम किया कि चैनल वालों ने उसके नाम पर ही सीधा एक शो बना दिया। उस शो का नाम है- हप्पू की उलटन-पलटन, हम बात कर रहे हैं दरोगा हप्पू सिंह यानी योगेश त्रिपाठी की। योगेश त्रिपाठी एक साधारण मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं।उनके पिता फिजिक्स के लेक्चरर थे। घर पर सिर्फ पढ़ाई-लिखाई का ही माहौल था, पिता चाहते थे कि मेरा बेटा टीचर बने लेकिन योगेश के सपने कुछ और ही थे इनका फिल्मों की तरफ रुझान इनकी माँ की वजह से पैदा हुआ क्योंकि इनकी माँ को फिल्में देखने का शौक था। उन्हीं की वजह से योगेश के अंदर भी फिल्मों को लेकर रुझान पैदा हो गया। योगेश के अंदर बचपन से अभिनय को लेकर शौक पैदा हो गया था। वे गांव-दराज में ड्रामा करने लगे। हालांकि, वे खुद को पर्दे पर दिखाना चाहते थे। उन्होंने समझ लिया कि अगर स्क्रीन पर दिखना है तो मुंबई का सफर तय करना पड़ेगा। उन्होंने कहा, 'हमारे लिए मुंबई के बारे में सोचना हीबहुत बड़ी बात थी। एक बार रेलवे की जॉब के लिए फॉर्म भर दिया था। एग्जाम सेंटर जानबूझकर मुंबई डाला था, ताकि वहां जाने का मौका मिले। झांसी तक पहुंचने पर पता चला कि एग्जाम कैंसिल हो गया है। तो हमें झांसी में ही उतरना पड़ा। अब मुंबई नहीं जा सकते थे, इसलिए ट्रेन छूकर ही वापस घर आ गए। मुंबई जाने वाली ट्रेन को छूना ही उस वक्त बड़ी बात थी।' समय के साथ योगेश त्रिपाठी को एहसास हुआ कि बिना किसी बेस के मुंबई जाना सही नहीं होगा, इसलिए उन्होंने पहली मंजिल लखनऊ को बनाया। उन्होंने कहा, 'मैं पढ़ाई का बहाना बनाकर लखनऊ आ गया और वहां थिएटर जॉइन कर लिया। मैंने समझ लिया कि बिना किसी गॉडफादर के मुंबई जाना सही नहीं होगा हालांकि, लखनऊ में भी बहुत स्ट्रगल करना पड़ा। वहां कई-कई घंटे सीढ़ियों पर बैठकर गुजारना पड़ता था। लखनऊ में थिएटर करने के दौरान योगेश को एक बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) जाने का मौका मिला। वहां जाकर उनकी आंखें खुल गईं। NSD जाकर पता चला कि असली थिएटर होता क्या है। इसके बाद दिन-रात सिर्फ थिएटर के बारे में सोचने लगा। घूम-घूम कर नुक्कड़ नाटक करने लगा। पांच-पांच शो करता था, जिसके लिए 75 रुपए मिलते थे।'इन्होंने यूपी के गोरखपुर और बड़हलगंज जैसी जगहों पर खूब सारे नुक्कड़ नाटक किए हैं। वहां जाने के लिए गाड़ी की डिग्गियों में बैठ जाता था। मेरे ऊपर ढोलक वगैरह पड़े रहते थे। एक चाय और एक समोसे में ही पूरा दिन निकाल देता था। "क्लोरोमिंट का ऐड योगेश के लिए सफलता की पहली सीढ़ी बना। जब इसकी शूटिंग चल रही थी तब डायरेक्टर शशांक बाली वहीं मौजूद थे। उन्हें योगेश त्रिपाठी का काम बहुत अच्छा लगा। इसके बाद क्या हुआ, योगेश त्रिपाठी ने बताया, 'शशांक बाली को मेरा रोल काफी फनी लगा था। उस ऐड को देखकर उन्होंने मुझे टीवी शो FIR में काम दे दिया। इसके बाद उन्हीं के जरिए भाबी जी घर पर हैं और हप्पू की उलटन-पलटन मिली। शशांक भाई के साथ मेरा उसी वक्त से काफी आत्मीय रिश्ता है।' भाबी जी घर पर हैं में पहली बार हप्पू सिंह का रोल मिला, फिर इसी नाम से बन गया शो की कहानी को आगे ले जाते हुए योगेश त्रिपाठी बताते हैं, मैं शो FIR में अलग-अलग किरदार निभाता था। मेरे काम की तो सराहना होती थी, लेकिन पहचान नहीं मिल पाती थी। फिर भाबी जी घर पर हैं सीरियल में, मुझे हप्पू सिंह का किरदार निभाने का मौका मिला। मैंने ऐसा काम किया कि चैनल वालों ने मेरे नाम पर ही सीधा एक सीरियल बना दिया। उस सीरियल का नाम रखा- हप्पू की उलटन-पलटन, योगेश त्रिपाठी यानी हप्पू सिंह की गिनती आज टीवी के सफलतम कलाकारों में होती है। हालांकि, इसके पीछे इनका सालों का लंबा संघर्ष है। उन्होंने कहा, 'आज जो भी हूं, अपनी मां की वजह से हूं। मां ने बचपन में फिल्में नहीं दिखाई होतीं तो शायद मेरे अंदर एक्टिंग का कीड़ा पैदा नहीं होता। मुझे इस बात का गहरा दुख है कि वे मुझे एक्टर बनते नहीं देख पाईं। जब मुझे पहला अवॉर्ड मिला तब मैं सिर्फ उन्हीं को याद कर रहायह था। आज मां रहतीं तो बात कुछ और रहती।'
यह बात कहते हुए योगेश भावुक हो गए, उनकी आंखें नम हो गईं।
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