कभी खाने के लिये भी नहीं थे पैसे : आज करोडों का है बिज़नेस।
Mar 27, 2025By rksharma
उत्तर प्रदेश का एक जिला बुलंदशहर उसमें एक कस्बा है अनूपशहर।
यहीं के रहने वाले हैं।Suduko स्कूटर के निर्माता प्रशांत। प्रशांत ने बताया कि 60 के दशक की बात है। दादा जमींदार थे। हमारा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस भी था। बड़ी हवेली, घर-द्वार, शहर में नाम चलता था। परिवार की एक पहचान थी, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब सब कुछ खत्म हो गया। उन्होंने अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताया,कि 'अनूपशहर एक कस्बा है, जहां उनका जन्म हुआ। चार भाई -बहन में ये सबसे बड़े है। इनके पापा एडवोकेट थे, लेकिन वकालत से घर चल पाना मुश्किल था। उनकी प्रैक्टिस ना के बराबर हो पा रही थी। किराये के मकान में हम रहते थे। पास के सरकारी स्कूल में ही पढ़ने जाते थे। उस समय आज की तरह फैसिलिटी भी नहीं थी। घर के हालात देखकर समझ में आ चुका था कि जल्द कुछ-न-कुछ करना होगा। ये घर में बड़ा बेटा थे। दोनों बहनों की शादी...... छोटे भाई की पढ़ाई-लिखाई का खर्च... कई जिम्मेदारियां थीं। इनके हाव-भाव देख मां हमेशा एक बात कहती थी- सोनू बड़ा होकर जरूर कुछ करेगा। माँ प्रशांत को घर पर सोनू कह कर बुलाती हैं । इन्होंने बताया कि मैं '12वीं के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से फिजिक्स से ग्रेजुएशन करने लगा, लेकिन तब लगा कि इससे तो कुछ होने वाला है नहीं । पापा एडवोकेट थे, तो इसलिए LLB में ही एडमिशन ले लिया। उन्होंने बताया कि मुझे याद है- मेरे पास रहने-खाने तक के पैसे नहीं होते थे। दोस्तों के घर से पैसे आते थे, लेकिन मुझे तो सब कुछ खुद से ही करना था। घरवालों से मांग नहीं सकता था। उनके पास होता, तब तो वे देते। मेरा कोई... शौक नहीं था। स्कूल-कॉलेज की कैसी मस्ती होती है... मुझे नहीं पता। पढ़ाई के दौरान भी मैंने कई छोटे-छोटे काम किए। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च निकालता था। सबसे बड़ी दिक्कत तो रहने की थी...जहां मैं पढ़ता था, वहां कई जानने वाले रिश्तेदार रहते थे। सभी के यहां मैं महीना-पंद्रह दिन बमुश्किल रह पाता था। रिश्तेदार कहते- अब, कब तक यहां रहोगे। अभी निकल जाओ। मैं सामान बटोरते हुए उनसे गुहार लगाता कि कुछ दिन और रहने दीजिए। पैसे न होने की वजह से ढाबे वाला खाना खिलाना बंद कर देता था। ऐसे करके तो मैंने अपने दिन गुजारे हैं।' फिर लॉ में एडमिशन के एक-डेढ़ साल ही हुए थे। तभी मेरा सिलेक्शन जयपुर के एक इंस्टीट्यूट में MBA के लिए हो गया। मैं लॉ छोड़कर जयपुर चला गया। लॉ के दौरान भी मैं एक बात सोचता रहता था कि वकालत करने के बाद जिस तरह की स्थिति पापा की है, वैसी ही मेरी न हो जाए। जयपुर से स्टडी कम्प्लीट करने के बाद मैंने पहले बैंकिंग सेक्टर में काम करना शुरू किया। फिर खुद की फाइनेंस कंपनी बनाई। और अब इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनी...। कभी लोग कहा करते थे कि तुम लोग खुद की शादी भी कैसे करोगे। कहते हैं, 'जब हमने इलेक्ट्रिक व्हीकल को लेकर रिसर्च शुरू किया, तो मार्केट में जितने भी इलेक्ट्रिक स्कूटर्स थे, सब को खरीदकर उसका ट्रायल किया। हमने जो स्कूटर बनाई है, उसमें 25 से ज्यादा USP जोड़े। करीब तीन साल तो प्रोडक्ट को मार्केट में लाने में लग गए। प्रशांत ने बताया कि ' जयपुर से स्टडी कम्प्लीट करने के बाद मैंने पहले बैंकिंग सेक्टर में काम किया था। फिर उसके बाद फाइनेंस कंपनी बनाई। इस दौरान बड़े-बड़े लोगों से कॉन्टैक्ट हुआ। अच्छे संबंध बनते चले गए। शुरुआत में करीब 150 करोड़ की जरूरत थी। अब कोई भी वेंडर एक-दो पार्ट तो बनाकर दे नहीं सकता है। मेरे पास तो इतने पैसे थे नहीं। जानने वालों और जापान में रहने वाले दोस्त के साथ जब अपने आइडिया को शेयर किया, तो दोस्तों ने इन्वेस्ट किया। प्रोडक्शन स्टार्ट होने के साथ-साथ हम फीडबैक के मुताबिक स्कूटर में बदलाव करते गए। आखिर में इस साल अप्रैल में हमने फाइनल प्रोडक्ट लॉन्च किया। अभी 4 कैटेगरी में हम स्कूटर बना रहे हैं। कोई भी व्यक्ति व्हीकल पर 3 क्विंटल तक वजन लादकर ले जा सकता है। अब हम थ्री व्हीलर और फोर-व्हीलर में भी आ रहे हैं। इसके लिए रिसर्च चल रही है।' प्रशांत मार्केटिंग को लेकर बताते हैं। कहते हैं, 'शुरुआत में हमने अपने जानने वालों को ही स्कूटर बेचा था। धीरे-धीरे माउथ पब्लिसिटी होती चली गई। फिर हमने सोशल मीडिया और कैंपेनिंग के जरिए प्रोडक्ट को प्रमोट करना शुरू किया। आज की तारीख में 100 से ज्यादा डिस्ट्रिब्यूटर हमारे हैं। जब से हम मार्केट में आए हैं, खामियों को लेकर एक भी शिकायत नहीं मिली है।' घर में कोई बिजनेस वाला था नहीं, लेकिन मेरा माइंड हमेशा से इन सब चीजों के बारे में सोचता रहता था। जब 2020 में कोरोना आया और गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लग गई, तो दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर में भी आसमान साफ दिखने लगा। एक बात तो तय हो चुकी थी कि आने वाला भविष्य इलेक्ट्रिक व्हीकल का ही है। मेरे एक जानने वाले जापान में रहते थे। वे वहां इलेक्ट्रिक व्हीकल पर काम कर रहे थे। Sokudo भी जापानी वर्ड है, जिसका मतलब स्पीड होता है। मैंने अपने भाई निशांत के साथ मिलकर इंडिया में इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने की ठानी। दरअसल उस वक्त जो स्कूटर बन रहे थे, उसके पार्ट्स चीन से इम्पोर्ट हो रहे थे। आज भी कई कंपनियां यही कर रही हैं। हमने मेक इन इंडिया के तहत स्कूटर के A टु Z पार्ट्स इंडिया में बनाने शुरू किए। इलेक्ट्रिक व्हीकल में कई खामियां थीं, जिसकी वजह से टेम्परेचर के बढ़ने पर बैटरी में आग लग रही थी। हमने इन सारी चीजों पर काम किया। फायर प्रूफ बैटरी बनाई।' प्रशांत ने अपने भाई निशांत वशिष्ठ के साथ मिलकर 2021 में Sokudo पर काम करना शुरू किया था। 2024 के अप्रैल में इन्होंने इलेक्ट्रिक स्कूटर मार्केट में लॉन्च किया है। अभी वे हर महीने 10 करोड़ की सेल कर रहे हैं। इस फाइनेंशियल ईयर में 100 करोड़ के टर्नओवर का अनुमान है। प्रशांत कहते हैं, '2019 तक इंडिया में इलेक्ट्रिक स्कूटर यानी चार्ज करके चलने वाला स्कूटर आ चुका था। कुछ समय बाद अलग-अलग मॉडल में कई कंपनियों ने इलेक्ट्रिक स्कूटर लॉन्च किए, लेकिन दर्जनों ऐसे मामले आए जिसमें खड़े-खड़े स्कूटर में आग लग जा रही थी। टू व्हीलर से लेकर फोर व्हीलर तक में ये दिक्कतें आनी शुरू हुईं। लोग चलते-फिरते आग की लपटों में आ जा रहे थे। इससे लोगों में व्हीकल की सेफ्टी को लेकर संदेह पैदा होने लगा। इलेक्ट्रिक व्हीकल पर से उनका भरोसा उठने लगा। यहां तक कि कंपनियां मार्केट से गाड़ियां वापस मंगवाने लगीं। इलेक्ट्रिक स्कूटर बनाने वाली कंपनी Sokudo के को-फाउंडर प्रशांत वशिष्ट अपनी कहानी बता रहे हैं। उनसे मेरी मुलाकात ग्रेटर नोएडा में होती है।
थोड़ी देर रुक कर प्रशांत बताते हैं, 'बहुत संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचा हूं। मेरे जानने वाले तो यहां तक कहते हैं- 'तुम्हारी लाइफ देखकर लगता है कि कोई फिल्म देख रहा हूं। माइनस से शुरू करके आज यहां तक पहुंचे हो।'हम लोग गांव से शहर आकर किराए के मकान मे रहने लगे। बस किसी तरह से गुजारा हो पा रहा था। दरअसल मेरे पापा 7 भाई थे। सभी भाइयों की बीमारी की वजह से यंग ऐज में ही एक-एक करके मौत हो गई। अपने भाइयों में सिर्फ पापा ही बचे।पापा बताते थे- उनके एक भाई की तबीयत बिगड़ती। उसका इलाज होता। पैसे जुटाने के लिए दादा को जमीन बेचनी पड़ती। कुछ समय बाद उनकी मौत हो जाती। इस तरह से एक-एक करके पापा के 7 भाइयों की मौत हो गई। जमीन बेचकर इलाज का खर्च और परिवार चलता था। ये तो हालात थे...' इलेक्ट्रिक स्कूटर बनाने वाली कंपनी Sokudo के को-फाउंडर प्रशांत वशिष्ट अपनी कहानी बता रहे हैं। थोड़ी देर रुक कर प्रशांत बताते हैं, 'बहुत संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचा हूं।
Mehnat se sab kuchh sambhav h.